Gram Panchayat Bharkhani

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।।।563।।।

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ज्ञान विक गये ध्यान विक गये ।

कलम विकी सम्मान विक गये ।

छोटी छोटी सुविधाओं पर ।

बडे बडे ईमान विक गये ।

सोच समझ कर मुंह से बोलें ।

दीवारों के कान विक गये ।

उनसे पूंछो जिन्दगी क्या है ।

जिनके सब अरमान विक गये ।

नग्न रह गईं जीवित लाशे ।

मुर्दों के परिधान विक गये ।

चोरों को मत दोष दीजिये ।

घर के दरवान विक गये ।

पशुओं की कीमत लगतीहै ।

विन मूल्य ईनशान विक गये ।

🌹नमो बुध्दाय

🌹जय सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य

🌹जय सम्राट अशोक

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